हम तुम हम तुम वे लहरें है अब जो किनारों के प्रेम में पड़ चुके है जो यात्रा हम किनारों के लिये संग तय कर रहे हैं वे हमें यकीनन किनारों तक ला पटकेंगी मगर क्या किनारा स्थायी रूप से मिल सकेगा हमें लौटना होगा फिर से उसी पथ पर जिस पथ से चलकर किनारों तक आयें है क्या इस क्षणिक किनारे रूपी सुख के लिये हमने अपनी यात्रा को गौण समझा और किनारे को अहम । जब तक समझेंगें देर हो सकती है हम अभी भी बीच में है किनारे तक नहीं पहुचें तो सचेत होकर यात्रा को जीवन समझें और हर क्षण एक दूजे पर समर्पित हो गुजार दें तो किनारे तक पहुंचना केवल भाग्य होगा हमारे पूरे जीवन की जीवनी नहीं। ©Astha gangwar © #PoetInYou #aasthagangwar