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वक्त..... जब हमारे बचपन का दौर था, वो वक्त ही कुछ

वक्त.....
जब हमारे बचपन का दौर था, वो वक्त ही कुछ और था।
ना किसी से कोई दुश्मनी ना कोई बैर,
सब थे अपने नही था कोई गैर।
एक दूसरे के साथ मिलके खेलते,
नदानियो में दी गई मार को भी झेलते।
खाते थे एक दूसरे से बहुत सी चोट,
पर अपने मन में नहीं रखते थे कोई खोट।
करते थे बहुत सी शैतानियां,
और सिर्फ अपनी मनमानियां।
कभी कभी अपने झगड़ो में मां बाप को भी शामिल कर लेते,
वो सुनाते एक दूसरे को और हमारी परेशानियां हर लेते।
लड़ झगड़ के हम तो फिर हो जाते एक,
रह नही सकते थे दूर हमारे ख्याल थे इतने नेक।
दिल से कोमल और दिमाग हमारा कच्चा था,
मन से ही नही जुबां से भी हर बोल होता सच्चा था।
हर गली कूचे में हमारा ही शौर था,
वो वक्त ही कुछ और था,जब हमारे बचपन का दौर था।
बड़े हुए तो अलग रहना हमें सिखाता गया,
इसके साथ रहकर तू भी बिगड़ जायेगा,
ये अपनो से ही हमको समझाया गया।
हुए अलग और एक दूसरे से जैसे जंग छिड़ गई,
जलन और आगे आने की दौड़ में,
हमारी वो दोस्ती भी भीड़ गई।
जाने अंजाने में हम हो गए थे काफी दूर,
बचपन में दोस्ती के किए वादे हो गए थे चकनाचूर।
अब बस अपने अपने घरों में हम रहने लगे,
धर्म के नाम पर एक दूसरे को अलग अलग कहने लगे।
सहने लगे अब अंदर ही अंदर काफी दर्द,
ना बनाया अपना कोई बचपन जैसा हमदर्द।
बता देते थे एक दूसरे से बेझिझक सारी बाते,
हुआ करती थी तब हमारी हर रोज मुलाकाते।
हमारा देखा गया सपना भी कितना सच्चा था,
उन दिनों का माहौल ही सबसे अच्छा था।
हर त्यौहार पे होता खुशियों शौर था,
 बड़ो की बातों पर होता बहुत गौर था।
वो वक्त ही कुछ और था,जब हमारे बचपन का दौर था।

©Kusu Simran #kusum #kusu_simran #bachpan #Waqt #Khushi #sapne #Apne #Dil #dimag 

#flowers
वक्त.....
जब हमारे बचपन का दौर था, वो वक्त ही कुछ और था।
ना किसी से कोई दुश्मनी ना कोई बैर,
सब थे अपने नही था कोई गैर।
एक दूसरे के साथ मिलके खेलते,
नदानियो में दी गई मार को भी झेलते।
खाते थे एक दूसरे से बहुत सी चोट,
पर अपने मन में नहीं रखते थे कोई खोट।
करते थे बहुत सी शैतानियां,
और सिर्फ अपनी मनमानियां।
कभी कभी अपने झगड़ो में मां बाप को भी शामिल कर लेते,
वो सुनाते एक दूसरे को और हमारी परेशानियां हर लेते।
लड़ झगड़ के हम तो फिर हो जाते एक,
रह नही सकते थे दूर हमारे ख्याल थे इतने नेक।
दिल से कोमल और दिमाग हमारा कच्चा था,
मन से ही नही जुबां से भी हर बोल होता सच्चा था।
हर गली कूचे में हमारा ही शौर था,
वो वक्त ही कुछ और था,जब हमारे बचपन का दौर था।
बड़े हुए तो अलग रहना हमें सिखाता गया,
इसके साथ रहकर तू भी बिगड़ जायेगा,
ये अपनो से ही हमको समझाया गया।
हुए अलग और एक दूसरे से जैसे जंग छिड़ गई,
जलन और आगे आने की दौड़ में,
हमारी वो दोस्ती भी भीड़ गई।
जाने अंजाने में हम हो गए थे काफी दूर,
बचपन में दोस्ती के किए वादे हो गए थे चकनाचूर।
अब बस अपने अपने घरों में हम रहने लगे,
धर्म के नाम पर एक दूसरे को अलग अलग कहने लगे।
सहने लगे अब अंदर ही अंदर काफी दर्द,
ना बनाया अपना कोई बचपन जैसा हमदर्द।
बता देते थे एक दूसरे से बेझिझक सारी बाते,
हुआ करती थी तब हमारी हर रोज मुलाकाते।
हमारा देखा गया सपना भी कितना सच्चा था,
उन दिनों का माहौल ही सबसे अच्छा था।
हर त्यौहार पे होता खुशियों शौर था,
 बड़ो की बातों पर होता बहुत गौर था।
वो वक्त ही कुछ और था,जब हमारे बचपन का दौर था।

©Kusu Simran #kusum #kusu_simran #bachpan #Waqt #Khushi #sapne #Apne #Dil #dimag 

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Kusu Simran

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