ना चाहत थी हमें उन्हें रुलाने की ना कोशिश थी हमें उन्हें भुलाने कि न जाने क्या उल्फत में थे वो काश समझ जाते हम राहें बना रहे थे उनके साथ जिंदगी सजाने की अब उन्होंने ने ही हमें गैर कर दिया और कुछ अपनों ने साजिश बना ली हमें लुटाने की अब कुछ यादें जुटी हुई हैं सांसे चलाने में और तरश गई हैं मेरी आंखें उनकी एक झलक पाने की न शिकवा है उनसे न कोई गिला है बस चाहत है उनसे वो हर आंसू लौटाने की जिसे कोशिश समझ रहे थे वो हमारी उन्हें रुलाने की खता जरुर है मेरी मगर काश समझ जाते वो मजबूरी थी वरना आरजू नहीं उनसे दूरियां बनाने की ##माफ करदो