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ज़रा सी आग पे उठता ये इतना धुआं क्यूं है? इस रत्ती

ज़रा सी आग पे उठता ये इतना धुआं क्यूं है?
इस रत्ती भर ज़िंदगी पे इंसा को इतना गुमा क्यूं है?
हो गई राख इक उम्र जलते - जलते, हो गई स्याह ये रात ढलते - ढलते।
फिर रात के खजाने से खेलता ये सुबह का जुआ क्यूं है?
ज़रा सी आग पे उठता ये इतना धुआं क्यूं है?

©Sumit Kumar #जुआ

#Light
ज़रा सी आग पे उठता ये इतना धुआं क्यूं है?
इस रत्ती भर ज़िंदगी पे इंसा को इतना गुमा क्यूं है?
हो गई राख इक उम्र जलते - जलते, हो गई स्याह ये रात ढलते - ढलते।
फिर रात के खजाने से खेलता ये सुबह का जुआ क्यूं है?
ज़रा सी आग पे उठता ये इतना धुआं क्यूं है?

©Sumit Kumar #जुआ

#Light
sumitkumar2815

Sumit Kumar

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