दूर दूर तलक न कोई दिख रहा बस दिख रही है कोई तो ये सड़क..... जहां नहीं कोई दिख रहा दूर दूर तलक..... कुछ पेड़ है बस जो किनारों पर लग रहे शायद धूप न लगे इन सुनसान सड़को को जो वर्षों से है तप रहे वो हरी चादर बन कर इस तरह इन्हे ढक रहे जैसे गोद में पड़े बच्चे पर है मां ने आंचल डाला...... टूट कर कुछ पत्तियां बिखरी है इधर उधर खेल रही है मानो साथ सड़कों के डाली से टूट कर...... - Rinki दूर दूर तलक न कोई दिख रहा बस दिख रही है कोई तो ये सड़क..... जहां कोई नहीं दिख रहा दूर दूर तलक..... कुछ पेड़ है बस जो किनारों पर लग रहे शायद धूप न लगे इन सुनसान सड़को को