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" गुड़िया रानी " अपनी आकांक्षाओ के बादलों को छोटा

" गुड़िया रानी "

अपनी आकांक्षाओ के बादलों को छोटा कर,
नयी उम्मीदों के आसमाँ को बड़ा कर,
अपनी कुछ इच्छाओं को नयी इच्छाओं में बदलकर,
कुछ बेहद अपनों को छोड़कर,
कुछ नए अपनो को अपनाकर,
अपने सपनों के दायरे को सीमित कर,
कुछ अनकहे अनसोचे सपनों को कन्धों पर टाँगकर,
अपनी ख्वाइशों में थोड़ी मिलावट कर,
नासमझी को मुस्कुराहट में समेट कर,
कुछ हसीं लम्हों को पीछे छोड़कर,
कुछ नये लम्हों को हसीं बनाकर,
अपना सुनहरे भविष्य को काँसे में ढ़ालकर,
आज़ाद पंछी सी रिवाजों में बंधकर,
नये भविष्य की ओढ़नी ओढ़कर,
कुछ पुराने खिलौनों को छोड़कर,
कुछ नये खिलौनों की तरफ मुड़कर,
एक गठरी से निकलकर,
दूसरी में शामिल होकर,
अपने बने बनाये पिंजड़े को खोलकर,
एक नये पिंजड़े का निर्माण कर,
अपनी आवाज को मौन कर,
किताबों की दुनिया को साथ लेकर,
कुछ थ्योरिटिकल प्रमेयों को प्रैक्टिकल कर,
माँ के इतिहास को दुहराकर,
रिश्तों की बारीकियों को समझकर,
चिड़िया सी एक घोसलें से उड़कर,
दूसरे घोसलें तक पहुँचकर,
कुछ तौर तरीकों को भुलाकर,
नये प्रचलनों को सहजकर,
अपनी चहक को छुपाकर,
शालीनता की चुनर में छिपकर,
सयानेपन को भूलकर,
समझदारी को संभालकर,
अपने लिये प्यार भूलाकर,
अपनों पर प्यार लुटाकर,
एक साँचे से निकलकर,
दूसरे साँचे में सिमटकर,
सारी खट्टी मीठी यादों की पोटली बांधकर,
उन्हें सामान के साथ पेटी में रखकर,
कुछ नयी यादें संजोकर,
सब कुछ पीछे छोड़कर,
सब कुछ फिर से बनाना है...

©अर्पिता
  #गुड़िया रानी # अहसास

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