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मुन्तज़िर हूँ तेरे रहम-ओ-करम की मै ॥कान्हा॥ हो ज

मुन्तज़िर हूँ तेरे 
रहम-ओ-करम की मै 
॥कान्हा॥
हो जो बारिश रहमतों की,,
 चाहूँ साथ उनके, तेरे दर पर आना
रहे ना कोई भी आस बाकी
 अँखियों को उनके दर्शन की,,
 वो समा जाऐ मुझमें 
ऐसे कान्हा!!

©पागल_ग्वार 
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