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शहर है मेरे कातिलों का ये ही शहर है..... मेरे कात

शहर है मेरे कातिलों का

ये ही शहर है..... मेरे कातिलों का 
यही मेरा वजूद....... सांस लेता है।
मैं रोजना निकलता हूँ....... घर से 
यही मेरा गुरूर........ फांस देता है।  

जब रूककर देखता हूँ ...भीड़ को 
तो लगता है..  कोई हादसा हुआ है
प्यारे फूलों को तरस जाते है...हाथ 
तो नस्तर हाथों के..... देख लेता हूँ 

ये ही शहर है मेरे कातिलों का 
यही मेरा वजूद सांस लेता है।

असमंजस की ये दुनियां.. निराली है
आदमी जयदा....कम पौधे हो गए है
तू आदमीयत जी.. कुछ पा ना सका
फिर इस दुनियां में... तु आ ना सका।  
 
ये ही शहर है मेरे कातिलों का 
यही मेरा वजूद सांस ....

©Tanha Shayar hu Yash
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