जो रोती थी तकिए पे सिर रख के वो अब मुस्कुराना सीख गई है। जो डरती थी अंधेरी गलियों से वो अब अकेले चलना सीख गई है। जो घबराती थी लोगो के तानों से वो अब बेबाक बोलना सीख गई है। जो डरती थी ज़िन्दगी की ठोकरों से वो अब खुद के लिऐ लड़ना सीख गई है। ये आज की औरत अब अपने लिए आवाज उठाना सीख गई है।। ©जज़्बात #aaj ki aurat