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*जब वो मेरी थी (शायद अब वो मेरी नहीं)~Part-2* जो

*जब वो मेरी थी (शायद अब वो मेरी नहीं)~Part-2*

जो कभी मिलते ही मुझमें समा जाती थी मेरी जान की तरह,
आज मिली भी तो जैसे किसी अंजान की तरह

जो हर्फ़-हर्फ़ पढ़ती थी हमें शिद्दत से कभी,
आज नजरअंदाज कर दिया किसी अजनबी के पैगाम की तरह

दिल मेरा गुलज़ार रहता था जो गुलशन के जैसे कभी,
आज बंजर पड़ा है किसी श्मशान की तरह

मुझे दर्द होने पर जो कभी खुद अश्क़ बहाया करती थी,
आज समझ रही है मुझे किसी बेजान की तरह

संभाल के रखती थी जो मेरी छोटी से छोटी चीजें,
आज मेरा दिल खो दिया किसी नादान की तरह

आज गैर सी लग रही है जो कभी बस मेरी हुआ करती थी,
मैं अभी भी उसी का हूँ पर शायद अब वो मेरी नहीं


~ शिवांश      #urstrulyShiv

©Shivansh Srivastav *जब वो मेरी थी (शायद अब वो मेरी नहीं)~Part-2*

जो कभी मिलते ही मुझमें समा जाती थी मेरी जान की तरह,
आज मिली भी तो जैसे किसी अंजान की तरह

जो हर्फ़-हर्फ़ पढ़ती थी हमें शिद्दत से कभी,
आज नजरअंदाज कर दिया किसी अजनबी के पैगाम की तरह
*जब वो मेरी थी (शायद अब वो मेरी नहीं)~Part-2*

जो कभी मिलते ही मुझमें समा जाती थी मेरी जान की तरह,
आज मिली भी तो जैसे किसी अंजान की तरह

जो हर्फ़-हर्फ़ पढ़ती थी हमें शिद्दत से कभी,
आज नजरअंदाज कर दिया किसी अजनबी के पैगाम की तरह

दिल मेरा गुलज़ार रहता था जो गुलशन के जैसे कभी,
आज बंजर पड़ा है किसी श्मशान की तरह

मुझे दर्द होने पर जो कभी खुद अश्क़ बहाया करती थी,
आज समझ रही है मुझे किसी बेजान की तरह

संभाल के रखती थी जो मेरी छोटी से छोटी चीजें,
आज मेरा दिल खो दिया किसी नादान की तरह

आज गैर सी लग रही है जो कभी बस मेरी हुआ करती थी,
मैं अभी भी उसी का हूँ पर शायद अब वो मेरी नहीं


~ शिवांश      #urstrulyShiv

©Shivansh Srivastav *जब वो मेरी थी (शायद अब वो मेरी नहीं)~Part-2*

जो कभी मिलते ही मुझमें समा जाती थी मेरी जान की तरह,
आज मिली भी तो जैसे किसी अंजान की तरह

जो हर्फ़-हर्फ़ पढ़ती थी हमें शिद्दत से कभी,
आज नजरअंदाज कर दिया किसी अजनबी के पैगाम की तरह