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मस्कन में  खड़ी दीवार हो गयी, माँ जो बूढ़ी और लाचा

मस्कन में  खड़ी दीवार हो गयी,
माँ जो बूढ़ी और लाचार हो गयी.

सफ़िना  से  दूर  पतवार हो गयी,
हालात से माँ की जो हार हो गयी.

दरीचों पे  जमा ये  गर्द है शायद, 
मकीनों की बेपर्दा दरार हो गयी.

मंज़र-ए-रंजिश जो रहा नज़र , 
तबियत माँ की आज़ार हो गयी. 

कर्ज़-ए-शीर कुछ यूँ नाक़िस रहा, 
औलाद अब माँ से बेज़ार हो गयी. 

'शुभी', तीरगी रौशन चराग़ ना करे,
माँ की ममता भी लो तार हो गयी. 
 इस ग़ज़ल को ध्यान से पढ़ने पर आप पाएंगे कि इसके दो भाव निकल सकते हैं. एक तो जो आजकल घर के बंटवारे का रिवाज चल पड़ा है वो और दूसरा भाव है भारत के बंटवारे का.

आप जुड़ें ग़ज़ल से तो सूचित कीजिएगा.

मस्कन-house
सफ़िना-ship
पतवार-rudder
मकीनों- house owners
मस्कन में  खड़ी दीवार हो गयी,
माँ जो बूढ़ी और लाचार हो गयी.

सफ़िना  से  दूर  पतवार हो गयी,
हालात से माँ की जो हार हो गयी.

दरीचों पे  जमा ये  गर्द है शायद, 
मकीनों की बेपर्दा दरार हो गयी.

मंज़र-ए-रंजिश जो रहा नज़र , 
तबियत माँ की आज़ार हो गयी. 

कर्ज़-ए-शीर कुछ यूँ नाक़िस रहा, 
औलाद अब माँ से बेज़ार हो गयी. 

'शुभी', तीरगी रौशन चराग़ ना करे,
माँ की ममता भी लो तार हो गयी. 
 इस ग़ज़ल को ध्यान से पढ़ने पर आप पाएंगे कि इसके दो भाव निकल सकते हैं. एक तो जो आजकल घर के बंटवारे का रिवाज चल पड़ा है वो और दूसरा भाव है भारत के बंटवारे का.

आप जुड़ें ग़ज़ल से तो सूचित कीजिएगा.

मस्कन-house
सफ़िना-ship
पतवार-rudder
मकीनों- house owners
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शुभी

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