एक छंद बाँसुरी की तान छेड़े किशन कन्हाई जब बरसाने गोकुल अजब छटा छाई है, रोम रोम पुलकित आंनद-विभोर करे देखो वृषभानु-सुता कान्ह पे रिझाई है। बाबा-मैया हैं निहाल झूमें गोप गोपी ग्वाल, तिहुँ लोक चहुँदिशि हरषि बधाई है। अंग-अंग श्याम रंग सगरो आकाश भर'यो उड़त अबीर ओ गुलाल रुत आई है। © संजय शर्मा 'सरस'