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हमारे मस्तिष्क में अनंत ज्ञान होता है। हम एक समय म

हमारे मस्तिष्क में अनंत ज्ञान होता है। हम एक समय मे केवल उसके एक भाग की उपस्थिति का ही अनुभव कर सकते है। यह अनुभव हमें चिंतन या किसी अन्य ज्ञात करने का साधन जैसे कि पुस्तक आदि हो सकता है। जो ज्ञान का भाग हमे चिंतन या किसी अन्य साधन से प्राप्त होता है वही हमारा दृष्टिकोण निर्मित करता है।
हम एक समय मे हमारे मस्तिष्क में उपस्थित अनंत ज्ञान का अनुभव कदापि नहीं कर सकते है परंतु ज्ञान रूपी हर एक कण-कण जो कि अनंत होता है उसकी अनंतता का अनुभव उसे अनंतता अथार्त परमार्थ की कसौटी पर कस कर अवश्य कर सकते हैं अतः हमें ज्ञान रूपी कण-कण की अनंतता का अनुभव करना चाहिए क्योंकि ज्ञान जो हम किसी भी साधन से प्राप्त कर रहे है वह उचित है या अनुचित इसका यह करते से हमें ज्ञात हो सकता है। केवल अनुचित तर्कों से ही यह सिद्ध नहीं होता कि ज्ञान अनुचित है इसके अतिरिक्त तर्कों की अपूर्णता वाला ज्ञान भी अनुचित होता है। #rudrasanjaysharma
हमारे मस्तिष्क में अनंत ज्ञान होता है। हम एक समय मे केवल उसके एक भाग की उपस्थिति का ही अनुभव कर सकते है। यह अनुभव हमें चिंतन या किसी अन्य ज्ञात करने का साधन जैसे कि पुस्तक आदि हो सकता है। जो ज्ञान का भाग हमे चिंतन या किसी अन्य साधन से प्राप्त होता है वही हमारा दृष्टिकोण निर्मित करता है।
हम एक समय मे हमारे मस्तिष्क में उपस्थित अनंत ज्ञान का अनुभव कदापि नहीं कर सकते है परंतु ज्ञान रूपी हर एक कण-कण जो कि अनंत होता है उसकी अनंतता का अनुभव उसे अनंतता अथार्त परमार्थ की कसौटी पर कस कर अवश्य कर सकते हैं अतः हमें ज्ञान रूपी कण-कण की अनंतता का अनुभव करना चाहिए क्योंकि ज्ञान जो हम किसी भी साधन से प्राप्त कर रहे है वह उचित है या अनुचित इसका यह करते से हमें ज्ञात हो सकता है। केवल अनुचित तर्कों से ही यह सिद्ध नहीं होता कि ज्ञान अनुचित है इसके अतिरिक्त तर्कों की अपूर्णता वाला ज्ञान भी अनुचित होता है। #rudrasanjaysharma