ना वक़्त की कोई पाबंदी हो ना चाल का कोई सलीका, आजादी का हो जशन बड़ा मैं खोजती फिरां, एक ऐसा जहां जहाँ मैं सिर्फ एक इंसा,, ना सड़कों का बटवारा हो, जितनी दिन में थी मेरी उतना रात मे याराना हो मेरे पिता की नींद में हो सुकून भरा मैं खोजती फिरां, एक ऐसा जहां जहाँ मैं सिर्फ एक इंसान