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।। ओ३म् ।। पुरुष एवेदं विश्वं कर्म तपो ब्रह्म परा

।। ओ३म् ।।

पुरुष एवेदं विश्वं कर्म तपो ब्रह्म परामृतम्‌।
एतद्यो वेद निहितं गुहायां सोऽविद्याग्रन्थिं विकिरतीह सोम्य ॥

यह 'पुरुष-तत्त्व' ही सम्पूर्ण विश्व है; 'वही' कर्म है, 'वही' तप है तथा 'वही' परम तथा अमृतरूप 'ब्रह्म' है। हे सौम्य, जो हृद्गुहा में निहित इस तत्त्व को जानता है वह यहीं, इसी लोक में अविद्या-ग्रन्थि का उच्छेदन कर देता है।

The Spirit is all this universe; He is works and askesis and the Brahman, supreme and immortal. O fair son, he who knows this hidden in the secret heart, scatters even here in this world the knot of the Ignorance.

( मुंडकोपानिषद २.१.१० ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #पुरुष #तत्व
।। ओ३म् ।।

पुरुष एवेदं विश्वं कर्म तपो ब्रह्म परामृतम्‌।
एतद्यो वेद निहितं गुहायां सोऽविद्याग्रन्थिं विकिरतीह सोम्य ॥

यह 'पुरुष-तत्त्व' ही सम्पूर्ण विश्व है; 'वही' कर्म है, 'वही' तप है तथा 'वही' परम तथा अमृतरूप 'ब्रह्म' है। हे सौम्य, जो हृद्गुहा में निहित इस तत्त्व को जानता है वह यहीं, इसी लोक में अविद्या-ग्रन्थि का उच्छेदन कर देता है।

The Spirit is all this universe; He is works and askesis and the Brahman, supreme and immortal. O fair son, he who knows this hidden in the secret heart, scatters even here in this world the knot of the Ignorance.

( मुंडकोपानिषद २.१.१० ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #पुरुष #तत्व