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काली घटा छा गई है प्यासी धरती को भी देखों हाथ फै

काली घटा छा गई है 
प्यासी धरती को भी देखों 
हाथ फैलाये आ गई है।  

बूदों के सेनापति खुद पड़े है
हरी भरी डालियों पर देखों
बैठी बूंदों को झूला गई है।   

पुकार कर झरनों सी दौड़ पड़ी है 
हर गुलशन है वादी को देखों 
इत्र की खुशबू से महका गई है।  

काली घटा छा गई है 
प्यासी धरती को भी देखों 
हाथ फैलाये आ गई है।


तन्हा शायर हूँ-यश 













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©Tanha Shayar hu Yash
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