मुठ्ठी में रेत कि तरह समय बीत गया ये पल मानो कल ही कि बात है, जब स्कूल से आते ही दोस्तो के साथ होते थे खेल।। शौक तो महंगे थी किताबे थी सस्ती। बारिश के पानी में उतारते थे अपनी कश्ती।। बातो बातो में एक दूसरे को कह देते थे ना जाने क्या क्या। जब अलग अलग नही साथ बैठ कर टिफीन खाते थे ये उस समय की हैं व्याख्या ।। साथ खेलने की खुशी थी एकता का मौसम था । रिश्तों में मासूमियत थी , छल कपट कम था ।। टीचर के सवाल के जवाब में उठाते थे सबसे पहले हाथ। दोस्ती में, खेल में,शैतानी में देते थे एक दूसरे का साथ ।। टीचर की फटकार सुनकर भी मुस्कुराते थे। होमवर्क कर कॉपी घर में ही भूल जाते थे।। रोज रोज ढूंढ लेते थे नया बहाना दोस्तो को छेड़ना और खूब सताना।। कुछ चीजे दोबारा नही होंगी जैसे बोरिंग लेक्चर में समय काटना बर्थडे पर अमीरों को तरह चॉकलेट बाटना।। लेक्चर के बीच में ही टिफीन खाना। कुछ गडबड हो जाए तो बाजू वाले का नाम फसाना।। दोस्तो से पेन उधार में लेना उसे वो पेन फिर कभी वापस ना देना।। छुट्टी की बेल बजते ही टपरी चले जाते थे। वो भी क्या दिन थे 2 रूपये में समोसे aa जाते थे ।। पढ़ने में चाहे जैसे भी हो IIT ki ट्यूशन जाते थे। 3_4 दोस्त मिलकर 100 का पेट्रोल डलाते थे।। ये सारे लम्हों को याद कर दिल नम सा हो जाता है। यादों की इस लहर मैं मानो समय थम सा जाता है।। ©Saurabh Chaube #Dosti #dosti❤ #फ्रेंडशीप #FriendshipDay