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जलते भी हैं अपने, जलाते भी है अपने। ये कैसा दुनिय

जलते भी हैं अपने,
जलाते भी है अपने। 
ये कैसा दुनिया का दस्तूर है।
पास रखते भी है अपने, 
दूर करते भी है अपने।
सपने सजाते भी है अपने, 
सपने तोड़ते भी है अपने ।
ये कैसा दुनिया का दस्तूर है।
जोड़ते भी है अपने, 
छोड़ते भी है अपने।
जख्म देते भी है अपने, 
मलहम देते भी है अपने। 
ये कैसा दुनिया का दस्तूर है।
दुख देते भी है अपने, 
सुख देते भी है अपने।

©Narendra kumar
  #Fire
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Narendra kumar

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