तीन साल पहले लिखी रचना #अंतहीन गर तलाश होगी, बाहरी दुनिया में कहीं अपनी ख़ुशी की, तो ये छल होगा स्वयं के साथ आएगा नहीं कुछ हाथ। पहले तलाशनी है, अपने दिल की गहराई अपनी चाहतों की छोर और उसे रखना है नियंत्रित समझना है उसे ही, मिलेगी तभी ख़ुशी तुम्हे, अन्यथा सर का दर्द ही बढेगा, दोस्त मेरे रुक जा मत भटक स्वयं के अंदर ढूंढ ज़रा वही छिपी है सच्ची ख़ुशी। जी ले पहले अपनी जिंदगी। जा ज़रा जी ले। #गिरीश 08.08.16 तलाश