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।। ॐ ।। वयं घ त्वा सुतावन्त आपो न वृक्तबर्हिषः ।

।। ॐ ।।
वयं घ त्वा सुतावन्त आपो न वृक्तबर्हिषः ।
 पवित्रस्य प्रस्रवणेषु वृत्रहन्परि स्तोतार आसते ॥

पद पाठ
व꣣य꣢म् । घ꣣ । त्वा । सुता꣡व꣢न्तः । आ꣡पः꣢꣯ । न । वृ꣣क्त꣡ब꣢र्हिषः । वृ꣣क्त꣢ । ब꣣र्हिषः । पवि꣡त्र꣢स्य । प्र꣣स्र꣡व꣢णेषु । प्र꣣ । स्र꣡व꣢꣯णेषु । वृ꣣त्रहन् । वृत्र । हन् । प꣡रि꣢꣯ । स्तो꣣ता꣡रः꣢ । आ꣣सते ॥

जैसे मेघों के जल आकाश को छोड़कर भूमि पर आकर धान्य, वनस्पति आदि को उत्पन्न करते हैं, वैसे ही हम पुत्रैषणा, वित्तैषणा, लोकैषणा आदि का परित्याग करके परमात्मा को प्राप्त कर आनन्द-रस को उत्पन्न करें ॥

 Just as the waters of the clouds leave the sky and come to the land and produce grains, vegetation etc., in the same way, we renounce sonhood, financiation, folklore, etc. and attain joy and produce joy and happiness.

सामवेद मंत्र २६१ #सामवेद #वेद #क्लेश #वर्षा #दुर्भावना #सुख
।। ॐ ।।
वयं घ त्वा सुतावन्त आपो न वृक्तबर्हिषः ।
 पवित्रस्य प्रस्रवणेषु वृत्रहन्परि स्तोतार आसते ॥

पद पाठ
व꣣य꣢म् । घ꣣ । त्वा । सुता꣡व꣢न्तः । आ꣡पः꣢꣯ । न । वृ꣣क्त꣡ब꣢र्हिषः । वृ꣣क्त꣢ । ब꣣र्हिषः । पवि꣡त्र꣢स्य । प्र꣣स्र꣡व꣢णेषु । प्र꣣ । स्र꣡व꣢꣯णेषु । वृ꣣त्रहन् । वृत्र । हन् । प꣡रि꣢꣯ । स्तो꣣ता꣡रः꣢ । आ꣣सते ॥

जैसे मेघों के जल आकाश को छोड़कर भूमि पर आकर धान्य, वनस्पति आदि को उत्पन्न करते हैं, वैसे ही हम पुत्रैषणा, वित्तैषणा, लोकैषणा आदि का परित्याग करके परमात्मा को प्राप्त कर आनन्द-रस को उत्पन्न करें ॥

 Just as the waters of the clouds leave the sky and come to the land and produce grains, vegetation etc., in the same way, we renounce sonhood, financiation, folklore, etc. and attain joy and produce joy and happiness.

सामवेद मंत्र २६१ #सामवेद #वेद #क्लेश #वर्षा #दुर्भावना #सुख