यूँ तो मरना भी अलग मुमकिन नही मगर एक उम्र जुदा होके अब जीना होगा जाने वाला कह जाता कम से कम इतना तो मेरी ज़ीस्त का कुछ सामान होता बिछड़ने वाले से महशर में मिलना हो शायद, बस वहीं मिलने का अब इंतेज़ार होगा जाते जाते दे जाता कोई सुराग़ अगर तलाशना इस दहर में फिर कितना आसां होता 10/10/20 ज़ीस्त- life महशर - the day of judgement YourQuote Baba