चल न पाया हूँ मैं इस जमाने के संग हर घड़ी लोग बदलें नया एक रंग मतलबी हर सुबह मतलबी शाम है मन में छुरियां छुपी होठ पर राम है हर तरफ खौफ़ कैसा ये फैला हुआ आदमी जानवर से भी बदतर हुआ बोल दो सच तो रिश्ते भी चुभने लगे आपसी प्रेम के रंग भी बिकने लगे शर्म की चादरें टूट कर गिर गई बेहयाई सभी को पसंद आ गई आज 'मँजू' तो बस मतलबों के लिए लोग गिरगिट पसंद हैं सभी के लिए ~ मनोज कुमार "मँजू" ©कवि मनोज कुमार मंजू #जमाने_के_संग #मनोज_कुमार_मंजू #मंजू #हकीकत #जिंदगी #OneSeason