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मजबूरी कह लो या कहो उसे पुलिस की नौकरी । बिना संशा

मजबूरी कह लो या कहो उसे पुलिस की नौकरी ।
बिना संशाधन के भी काम चाहिए सौ फीसदी।।
चाहे हो बीमार कोई चाहे कितनी भी परेशानी।
सुनता है कौन यहां? पुलिसवाला जैसे मानव ही नहीं।।
अनुशासन और प्रताणना एक दूसरे का पर्याय है यहीं। 
अंग्रेजो के अफसर, भारतीय सिपाहियों के लिए बनाये थे तभी।। 
दोषारोपण हर कोई करता, मैदान में आकर देखे तो सही।
रिस्पांस हर कोई चाहता, उसे रिस्पांस देता नहीं कोई।।
दूसरों से क्या करें शिकायत, अपने ही उसे समझते नहीं। 
देश भक्ति जनसेवा तो ठीक है, वास्तविकता मजबूरी तो पेट का है ही।। police #police
मजबूरी कह लो या कहो उसे पुलिस की नौकरी ।
बिना संशाधन के भी काम चाहिए सौ फीसदी।।
चाहे हो बीमार कोई चाहे कितनी भी परेशानी।
सुनता है कौन यहां? पुलिसवाला जैसे मानव ही नहीं।।
अनुशासन और प्रताणना एक दूसरे का पर्याय है यहीं। 
अंग्रेजो के अफसर, भारतीय सिपाहियों के लिए बनाये थे तभी।। 
दोषारोपण हर कोई करता, मैदान में आकर देखे तो सही।
रिस्पांस हर कोई चाहता, उसे रिस्पांस देता नहीं कोई।।
दूसरों से क्या करें शिकायत, अपने ही उसे समझते नहीं। 
देश भक्ति जनसेवा तो ठीक है, वास्तविकता मजबूरी तो पेट का है ही।। police #police