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कभी सोचा है ? इश्क़ की उमर क्या है ! कुछ दिन, कुछ

कभी सोचा है ? इश्क़ की उमर क्या है !
कुछ दिन, कुछ साल, त’उम्र या मरने बाद तक,
हाल–ए–हदिल से इज़हार ए इश्क़ तक ,
या सपनों से निकाल के सामने दीदार तक !

प्यारी बातों से ले के तकरार तक,
या मनाने से ले के रूठ जानें तक,
आंखें चुराने से ले के, टक–टकी लगाने तक !

उसके ख्याल से ले के, उसके हर लम्हे में शुमार होने तक ,
हाथों में उसके हाथ आने तक, या लबों के मिल जानें तक ,

उसके खुशबू के एहसास तक ,
या खुद उसकी खुशबू में महक जानें तक ,
सिर्फ रूह के मिलने से या जिस्म के मिल जानें तक !
कभी सोचा है ? इश्क की उमर क्या होगी !

साथ होना ही इश्क है, या दूरियां में भी इसका ज़िक्र हैं ,
क्या तुम्हे भी प्यार तब तक ही था ?
जब तक उससे भी तुम्हारी फिक्र थी !

अगर वो साथ नहीं तो,
क्या तुम्हारा इश्क़ भी फीका पड़ने लगा है ?
क्या अब तुम्हारे दिल को भी उसकी फिक्र नहीं !

क्या जो कल तक अपना था, आज उससे कोई रिश्ता नहीं !
क्या अब उसकी बातों से तुम्हारा दिल पिघलता नहीं ?
आंखों में नमी लाने के लिए ,
क्या अब उसका नाम काफ़ी नही?

अगर यूं है तो , एक उमर इश्क के लिए काफ़ी नहीं !!!
  कविता –

कभी सोचा है ? इश्क़ की उमर क्या है !
कुछ दिन, कुछ साल, त’उम्र या मरने बाद तक,
हाल–ए–हदिल से इज़हार ए इश्क़ तक ,
या सपनों से निकाल के सामने दीदार तक !

प्यारी बातों से ले के तकरार तक,
कभी सोचा है ? इश्क़ की उमर क्या है !
कुछ दिन, कुछ साल, त’उम्र या मरने बाद तक,
हाल–ए–हदिल से इज़हार ए इश्क़ तक ,
या सपनों से निकाल के सामने दीदार तक !

प्यारी बातों से ले के तकरार तक,
या मनाने से ले के रूठ जानें तक,
आंखें चुराने से ले के, टक–टकी लगाने तक !

उसके ख्याल से ले के, उसके हर लम्हे में शुमार होने तक ,
हाथों में उसके हाथ आने तक, या लबों के मिल जानें तक ,

उसके खुशबू के एहसास तक ,
या खुद उसकी खुशबू में महक जानें तक ,
सिर्फ रूह के मिलने से या जिस्म के मिल जानें तक !
कभी सोचा है ? इश्क की उमर क्या होगी !

साथ होना ही इश्क है, या दूरियां में भी इसका ज़िक्र हैं ,
क्या तुम्हे भी प्यार तब तक ही था ?
जब तक उससे भी तुम्हारी फिक्र थी !

अगर वो साथ नहीं तो,
क्या तुम्हारा इश्क़ भी फीका पड़ने लगा है ?
क्या अब तुम्हारे दिल को भी उसकी फिक्र नहीं !

क्या जो कल तक अपना था, आज उससे कोई रिश्ता नहीं !
क्या अब उसकी बातों से तुम्हारा दिल पिघलता नहीं ?
आंखों में नमी लाने के लिए ,
क्या अब उसका नाम काफ़ी नही?

अगर यूं है तो , एक उमर इश्क के लिए काफ़ी नहीं !!!
  कविता –

कभी सोचा है ? इश्क़ की उमर क्या है !
कुछ दिन, कुछ साल, त’उम्र या मरने बाद तक,
हाल–ए–हदिल से इज़हार ए इश्क़ तक ,
या सपनों से निकाल के सामने दीदार तक !

प्यारी बातों से ले के तकरार तक,