करके बुलंद अपनी छाती, था खड़ा वो भू की रक्षा में किसी आपदा से लड़ना , सीखा था अपनी कक्षा में अपने ही उसके बने थे दुश्मन, कहते थे खुद से खुद को ज्ञानी सेना का जिसके नाम हुआ, इस दुनिया में बिज्ञानी देखा दुश्मन की टुकड़ी में, खड़ा था अपना भाई अपनों के आगे झुका वो, इतना बन बैठा है खाई अपने ही सैनिक का अपनों ने, बुलंद सीना तोड़ दिया हार के रक्षक अपनो से ही, रक्षा करना छोड़ दिया था वो सबका ऊचा पर्वत, था वो सबका गौरव बस अपने स्वार्थ में आकर, मानव बन बैठा है कौरव जिसको तुम कहते हो पत्थर, वहीं तेरा भगवान है जो रक्षक है धरती का , वहीं दुनिया में बलवान है।। बेकार की बाते छोड़ो, सच्चाई से नाता जोड़ो कविता:- "पर्वत" #Parvat #पर्वत #PoetryOnline #Poem #Nojoto #NojotoNews #NojotoOnline #Motivation