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"अटल बिहारी वाजपेयी" एक गीत नया मैं गाता हूँ, सच्

"अटल बिहारी वाजपेयी"

एक गीत नया मैं गाता हूँ, सच्ची दास्तां सुनाता हूँ ।

न छुपा सका जिसे अँधेरा, न जला सका सूरज कभी
उस अखंड महापुरुष की गाथा आज तुम्हें सुनाता हूँ ।

किए कई बेनक़ाब चेहरे, ख़त्म किए तिलिस्म के मेले,
सच ही की राह पर चला वो, चाहे चलना पड़ा अकेले ।
कई आए और कई गए मगर उसके जैसा हुआ न कोई  
ख़ूब  मंडराए ग़मों के बादल उस पर, ना वो रुका क़भी ।

आई थी तब कई पार्टिया, उसका साम्राज्य गिराने को
मग़र न कभी कोई छू पाया, न कोई गिरा पाया उसको ।
एक  ख़्वाब  संजोकर कूट राजनीति को मिटाया उसने,  
देकर अटूट  छाप,  छोड़ गया पीछे पदचिन्हों को अपने ।

न भुलाया कभी अपनी जननी की मातृभाषा को उसने,
हिन्दू-राष्ट्र-संघ में हिन्दी को एक नई दिशा दिखाई उसने ।
बताई  कुछ  इस तरह हमें ताक़त वतन-ए-हिंदुस्तान की, 
इतिहास में अमर कराई, कहानी पोखरण अभियान की ।

@talvindra_writes "अटल बिहारी वाजपेयी"

एक गीत नया मैं गाता हूँ, सच्ची दास्तां सुनाता हूँ ।

न छुपा सका जिसे अँधेरा, न जला सका सूरज कभी
उस अखंड महापुरुष की गाथा आज तुम्हें सुनाता हूँ ।

किए कई बेनक़ाब चेहरे, ख़त्म किए तिलिस्म के मेले,
"अटल बिहारी वाजपेयी"

एक गीत नया मैं गाता हूँ, सच्ची दास्तां सुनाता हूँ ।

न छुपा सका जिसे अँधेरा, न जला सका सूरज कभी
उस अखंड महापुरुष की गाथा आज तुम्हें सुनाता हूँ ।

किए कई बेनक़ाब चेहरे, ख़त्म किए तिलिस्म के मेले,
सच ही की राह पर चला वो, चाहे चलना पड़ा अकेले ।
कई आए और कई गए मगर उसके जैसा हुआ न कोई  
ख़ूब  मंडराए ग़मों के बादल उस पर, ना वो रुका क़भी ।

आई थी तब कई पार्टिया, उसका साम्राज्य गिराने को
मग़र न कभी कोई छू पाया, न कोई गिरा पाया उसको ।
एक  ख़्वाब  संजोकर कूट राजनीति को मिटाया उसने,  
देकर अटूट  छाप,  छोड़ गया पीछे पदचिन्हों को अपने ।

न भुलाया कभी अपनी जननी की मातृभाषा को उसने,
हिन्दू-राष्ट्र-संघ में हिन्दी को एक नई दिशा दिखाई उसने ।
बताई  कुछ  इस तरह हमें ताक़त वतन-ए-हिंदुस्तान की, 
इतिहास में अमर कराई, कहानी पोखरण अभियान की ।

@talvindra_writes "अटल बिहारी वाजपेयी"

एक गीत नया मैं गाता हूँ, सच्ची दास्तां सुनाता हूँ ।

न छुपा सका जिसे अँधेरा, न जला सका सूरज कभी
उस अखंड महापुरुष की गाथा आज तुम्हें सुनाता हूँ ।

किए कई बेनक़ाब चेहरे, ख़त्म किए तिलिस्म के मेले,