आ अब गांव चलते हैं लह लहराते उपजों में झूमतें हैं पुवाल दरख्त पर बैठतें हैं मकसद ए रोटी से रूठ भनुगा बन इर्द-गिर्द में चलते हैं । आ अब गांव चलते हैं चमचमाती सितारों में जगतें हैं गपशप फुल-कांटें की करते हैं चकाचौंध चमकाहत से होकर चूर चांदनी चांद में चलते हैं । आ अब गांव चलते हैं खाली टांग पिछलतें हैं बुजुर्गों की अनुभूति करतें हैं बुलंद तामिर से होकर मुक्त नील गगन के मैत्री में चलते हैं । - ईशांत मोदी #मेरा_गांव ।