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कालेज नामा (कैप्सन में पढें) कालेज नामा भाग १ अजीत

कालेज नामा
(कैप्सन में पढें) कालेज नामा भाग १
अजीत मालवीय 'ललित'

स्कूल की पढ़ाई पूरी करके उच्च शिक्षा के लिए बड़े से शहर का रुख किया तो ढेरों समस्याओं का सामना करना पड़ा गांव की धूल मिट्टी को छोड़कर अब मैं एक बहुमंजिला इमारतों वाले शहर में अपने घर की यादों को तलाश कर रहा था रात करीब आठ बजे गर्मी के दिन थे ट्रेन से उतरा तो ढेर सारा शोर शराबा बहनों की तीक्ष्ण ध्वनि कानों को अप्रिय लग रही थी।
                    जैसे तैसे ठिकाने पर पहुंचा और दूसरे दिन से शुरुआत होती है दौड़ भाग और सिर्फ दौड़-भाग की, कॉलेज पहुंचता हूं । 
           दाखिले के लिए इतना परेशान होना पड़ता है कि मेरे पैरों में छाले आ जाते हैं क्योंकि मेन रोड से कॉलेज अंदर 2 किलोमीटर होता है और वहां तक पैदल ही आना जाना पड़ता है इसी वजह से एडमिशन के लिए लगातार मैं तीन दिन भटका तब आखिर में जाकर दाखिला हुआ।
              प्रथम अनुभव तो लगभग ऐसा ही था कि सब टीचर अच्छे हैं। ऐसा पहनावा,बैल एजुकेटेड, बड़ी बड़ी डिग्री से सुशोभित जिनके ठाठ हाय तौबा, यह सब देखकर कुछ अचंभित कुछ सहमा तो कुछ उत्साही था मैं । 
   
कालेज नामा
(कैप्सन में पढें) कालेज नामा भाग १
अजीत मालवीय 'ललित'

स्कूल की पढ़ाई पूरी करके उच्च शिक्षा के लिए बड़े से शहर का रुख किया तो ढेरों समस्याओं का सामना करना पड़ा गांव की धूल मिट्टी को छोड़कर अब मैं एक बहुमंजिला इमारतों वाले शहर में अपने घर की यादों को तलाश कर रहा था रात करीब आठ बजे गर्मी के दिन थे ट्रेन से उतरा तो ढेर सारा शोर शराबा बहनों की तीक्ष्ण ध्वनि कानों को अप्रिय लग रही थी।
                    जैसे तैसे ठिकाने पर पहुंचा और दूसरे दिन से शुरुआत होती है दौड़ भाग और सिर्फ दौड़-भाग की, कॉलेज पहुंचता हूं । 
           दाखिले के लिए इतना परेशान होना पड़ता है कि मेरे पैरों में छाले आ जाते हैं क्योंकि मेन रोड से कॉलेज अंदर 2 किलोमीटर होता है और वहां तक पैदल ही आना जाना पड़ता है इसी वजह से एडमिशन के लिए लगातार मैं तीन दिन भटका तब आखिर में जाकर दाखिला हुआ।
              प्रथम अनुभव तो लगभग ऐसा ही था कि सब टीचर अच्छे हैं। ऐसा पहनावा,बैल एजुकेटेड, बड़ी बड़ी डिग्री से सुशोभित जिनके ठाठ हाय तौबा, यह सब देखकर कुछ अचंभित कुछ सहमा तो कुछ उत्साही था मैं ।