चाँद का कसूर चाँद का कुसूर है, क्यूं हम से दूर है उसको छूने का बढ़ रहा फितूर है झलक दिखलाये बादलो में छिप जाये आदत ये उसकी ज़रा मशहूर है कभी संग चांदनी रात सजा दे कभी काली करे रात भी दस्तूर है जब निगाहों ने बसा लिया है दिल में तो खता भी सब इसकी मन्जूर है . चाँद का कुसूर है ...... आमिल Chand ka qusoor h ,q hum se door h Usko choone ka badd rha fitoor h Jhalak dikhlaaye ,badlo m chip jaaye Aadat ye uski zra mashhoor h Kbhi sang chandni raat sjaa de Kabhi kaali kre raat bhi dastoor h