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ऐसी कौन-सी बात थी जिसने एक 34 बरस के उस नोजवान को

ऐसी कौन-सी बात थी जिसने एक 34 बरस के उस नोजवान को तोड़ के रख दिया जो खूबसूरत था, हँसमुख था, मिलनसार था, सफलता को जिसने अभी चखा ही था, जो अपनी कला में माहिर था, सिर्फ माहिर ही नही था, बल्कि अपनी कला के दम पर ही सफलता के शिखर पर पहुंचा भी।
ऐसा भी नही है कि उसे काम नही मिल रहा था, अभी हाल ही में तो उसकी एक फ़िल्म आई थी, #छिछोरे।
फ़िल्म-दर-फ़िल्म उसमे निखार आ रहा था, अपने समकालीन अभिनेताओं के समक्ष वह इक्कीस ही प्रतीत होता था।
दिमाग मे एक ही बात घूम रही है, के आखिर क्या हालात रहे होँगे?
 कैसी परिस्थिति रही होगी?
क्या घटित हुआ होगा?
उसके मन मे क्या चल रहा होगा?
कितना दुख होना चाहिए दिल मे, कितनी पीड़ा होनी चाहिए मन मे,कितना टूटा होना चाहिए अंदर से, के कोई खुद को ही खत्म करने का विचार मन मे ले आये, और सिर्फ विचार ही नही वो खुद को खत्म भी कर दे।
सच मे बड़ा डरावना ख्याल है।
वो पैमाना ही नही मिल रहा है जिससे इस नोजवान के मन के बोझ को नापा जा सके, अंदर के दुख का अंदाज़ा लगाया जा सके, जो मन के कष्टकारी भावों को उस मोनिटर या सिल्वर स्क्रीन  पर दिखा सके जिस पर लोग इनके भावों को आसानी से समझ जाते थे और उसी क्षण आँसू बहा कर मन को हल्का भी कर लेते थे।
क्षति तो वाकई में हुई है, बहुत भारी हुई है, लेकिन अब किया क्या जा सकता है, सिवाय कारण ढूंढने के।
अच्छा होता यदि इन कारणों को पहले से जानने की कोई तरकीब होती, तो इतने बड़े नुकसान से बचा जा सकता था।

निश्चित ही वो कायर नही था,
बस उसे ये बेहतर लगा होगा। कायर तो नही कह सकते
बस तुम्हे ये ज्यादा बेहतर लगा होगा।
ऐसी कौन-सी बात थी जिसने एक 34 बरस के उस नोजवान को तोड़ के रख दिया जो खूबसूरत था, हँसमुख था, मिलनसार था, सफलता को जिसने अभी चखा ही था, जो अपनी कला में माहिर था, सिर्फ माहिर ही नही था, बल्कि अपनी कला के दम पर ही सफलता के शिखर पर पहुंचा भी।
ऐसा भी नही है कि उसे काम नही मिल रहा था, अभी हाल ही में तो उसकी एक फ़िल्म आई थी, #छिछोरे।
फ़िल्म-दर-फ़िल्म उसमे निखार आ रहा था, अपने समकालीन अभिनेताओं के समक्ष वह इक्कीस ही प्रतीत होता था।
दिमाग मे एक ही बात घूम रही है, के आखिर क्या हालात रहे होँगे?
 कैसी परिस्थिति रही होगी?
क्या घटित हुआ होगा?
उसके मन मे क्या चल रहा होगा?
कितना दुख होना चाहिए दिल मे, कितनी पीड़ा होनी चाहिए मन मे,कितना टूटा होना चाहिए अंदर से, के कोई खुद को ही खत्म करने का विचार मन मे ले आये, और सिर्फ विचार ही नही वो खुद को खत्म भी कर दे।
सच मे बड़ा डरावना ख्याल है।
वो पैमाना ही नही मिल रहा है जिससे इस नोजवान के मन के बोझ को नापा जा सके, अंदर के दुख का अंदाज़ा लगाया जा सके, जो मन के कष्टकारी भावों को उस मोनिटर या सिल्वर स्क्रीन  पर दिखा सके जिस पर लोग इनके भावों को आसानी से समझ जाते थे और उसी क्षण आँसू बहा कर मन को हल्का भी कर लेते थे।
क्षति तो वाकई में हुई है, बहुत भारी हुई है, लेकिन अब किया क्या जा सकता है, सिवाय कारण ढूंढने के।
अच्छा होता यदि इन कारणों को पहले से जानने की कोई तरकीब होती, तो इतने बड़े नुकसान से बचा जा सकता था।

निश्चित ही वो कायर नही था,
बस उसे ये बेहतर लगा होगा। कायर तो नही कह सकते
बस तुम्हे ये ज्यादा बेहतर लगा होगा।