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तेरे शहर में भटके दरबदर ,पर ठिकाना ना मिला, खोया

तेरे शहर में भटके दरबदर ,पर  ठिकाना ना मिला,
खोया था तेरी गलियों में ,ये दिल दीवाना ना मिला,

समझते थे तुम्हे अपना , मग़र  तुम  गैर  के हो बैठे,
तलाश रही अधूरी मेरी ,पर   आबो  दाना ना मिला,

बस एक  आरज़ू   में   तेरी ,भटका किये सनम हम,
प्याला लिए  थे हाथों में , मग़र  मयखाना  ना मिला,

पहुँचे जो गली तेरी सनम , साँसो में हुई सरगोशियाँ,
मेरी ख़्वाहिशों को मिलने का तुझसे,बहाना ना मिला,

अब लौट चले तेरे शहर से ,एक टूटा हुआ दिल लेके,
छोड़ा था इस शहर में , फ़िर से वो ज़माना ना मिला।।
                                                   पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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