खड़ा हूँ बारिश में,चिलचिलाती धूप में भी नहीं डिगा हूँ मैं लड़खड़ाया पर संभला,गिर के भी नहीं रुका हूं मैं कभी लड़ा ज़माने से, कभी ख़ुद से लड़ा हूं मैं पस्त हुआ कई बार हूँ उठा भी हर बार हूँ मैं डोलते विश्वास में हिम्मत का आग़ाज़ हूं मैं to be completed