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राजपथों के ढोंगी नायक चंदन चाहे जितना मल लो। सत्ता

राजपथों के ढोंगी नायक चंदन चाहे जितना मल लो।
सत्ता हथियाने की खातिर चाहे जितनी चालें चल लो।
पर मैं अपनी रचनाओं से तुम्हें पराजित सदा करूंगा।
और पसीने से लथपथ हर माथे के मैं गले लगूंगा।

जो  खेतों  के  संन्यासी हैं  सूर्य  ताप से नित मिलते हैं।
फटी कमीजों में अपने जो ओस बूंद के कण सिलते हैं।
जिसके साथ हमेशा रहता धुंध कुहासे का अपनापन।
जिसके आगे झूम - झूम कर मोर नित्य करते हैं नर्तन।
मैं  उन  मेहनतकश  अंगों में फूलों का मकरन्द भरूंगा।
और पसीने की-------------------------------------(१)

जाति-पांति का जहर घोलकर तुमने अपने भाग्य संवारे।
और  तुम्हारी  कूटनीति  से  जगह -जगह  दहके  अंगारे।
धर्मवाद  की  दग्ध चिता  मानवता को झोंका तुमने।
आम - जनों  को  मिलने वाले अधिकारों को रोंका तुमने।
पर  मैं  अपने  हर गीतों  में  तुम्हें  धरा  का  बोझ कहूंगा।
और पसीने-------------------------------------------(२)

जिन  हाथों  की  गीली  मेंहदी  सीमाओं पर हुई निछावर।
भरी  जवानी  विलग  हो  गया  जिन  पैरों से नेह महावर ।
जिनकी  कच्ची  उम्र  जवानी  के दर्पण को त्याग चुकी है।
और नींद जिन-जिन आंखों से अगणित रातें जाग चुकी है।
उन  आंखों  से  बहते  आंसू  का  जीवन  संग्राम  लिखूंगा।
और पसीने------------------------------------------(३)

©करन सिंह परिहार
  #राजपथों के ढोंगी नायक

#राजपथों के ढोंगी नायक #कविता

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