Nojoto: Largest Storytelling Platform

मैं हार लिखता हूँ।। तुम प्यार लिखते हो और मैं हार

मैं हार लिखता हूँ।।

तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।
मज़ा किसमे रहा कितना बारंबार लिखता हूँ।

कोई रोटी से हारा है,
कोई गोटी से हारा है।
भूखों मर रहा कोई,
द्रौपदी हर रहा कोई।
कहाँ कब धर्म बैठा था,
दूषित ये कर्म बैठा था।
कहाँ किसका रहा वंदन,
तिलक माथे लगा चन्दन।
लिखूं किसकी मैं बातों को,
झुलसते दिन और रातों को।
कहाँ कब आह निकली थी,
मानवता जब ये फिसली थी।
कोई था विद्व कोई ज्ञानी,
भरा आंखों में बस पानी।
हर उस आंख का मैं तो सरोकार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

पूजा मैं करूँ किसकी,
करूँ किसपे पुष्प अर्पण।
मुंडाए सिर अपना मैं,
करूँ बस सत्य का तर्पण।
कभी जो ईश था मेरा,
वही मुझसे रूठा है,
क्यूँ उसने भी नहीं देखी,
भरोसा मेरा टूटा है।
भूखों वो जो मरता था,
था भगवन तब कहाँ सोया।
क्यूँ आगे वो नहीं आया,
क्यूँ अपना हाथ था धोया।
भगवन-दशा को आज मैं स्वीकार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

रोटी या मुहब्बत हो,
एक भूख हैं दोनों।
दोनों की कमी खलती,
सच दो टूक हैं दोनों।
रोटी बिन कहाँ जीवन,
चला किसका कहो कब है।
भरा हो पेट रोटी से,
उसका ही तो ये रब है।
मुहब्बत एक झांसा है,
कहानी भूख की सच्ची।
जो आंखें आर्द्र ना होतीं,
ज़ुबाँ ये मूक ही अच्छी।
प्रेम और भूख की मैं तो टकरार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

चलो कुछ तर्क भी कर लें,
कुछ बातें कहता हूँ।
मुहब्बत तो सही फिर भी,
भूख लिखने से डरता हूँ।
जननी है सफलता की,
जिसे हम हार कहते हैं।
सफल हो कर किया तुमने,
उसे ही प्यार कहते हैं।
जरा तुम हार कर देखो,
मज़ा फिर जीत का कितना।
जीत के बाद जो हो प्रीत,
मज़ा फिर प्रीत का कितना।
होकर आज नत मैं ये तर्क-सार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मैं हार लिखता हूँ।।

तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।
मज़ा किसमे रहा कितना बारंबार लिखता हूँ।

कोई रोटी से हारा है,
कोई गोटी से हारा है।
भूखों मर रहा कोई,
मैं हार लिखता हूँ।।

तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।
मज़ा किसमे रहा कितना बारंबार लिखता हूँ।

कोई रोटी से हारा है,
कोई गोटी से हारा है।
भूखों मर रहा कोई,
द्रौपदी हर रहा कोई।
कहाँ कब धर्म बैठा था,
दूषित ये कर्म बैठा था।
कहाँ किसका रहा वंदन,
तिलक माथे लगा चन्दन।
लिखूं किसकी मैं बातों को,
झुलसते दिन और रातों को।
कहाँ कब आह निकली थी,
मानवता जब ये फिसली थी।
कोई था विद्व कोई ज्ञानी,
भरा आंखों में बस पानी।
हर उस आंख का मैं तो सरोकार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

पूजा मैं करूँ किसकी,
करूँ किसपे पुष्प अर्पण।
मुंडाए सिर अपना मैं,
करूँ बस सत्य का तर्पण।
कभी जो ईश था मेरा,
वही मुझसे रूठा है,
क्यूँ उसने भी नहीं देखी,
भरोसा मेरा टूटा है।
भूखों वो जो मरता था,
था भगवन तब कहाँ सोया।
क्यूँ आगे वो नहीं आया,
क्यूँ अपना हाथ था धोया।
भगवन-दशा को आज मैं स्वीकार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

रोटी या मुहब्बत हो,
एक भूख हैं दोनों।
दोनों की कमी खलती,
सच दो टूक हैं दोनों।
रोटी बिन कहाँ जीवन,
चला किसका कहो कब है।
भरा हो पेट रोटी से,
उसका ही तो ये रब है।
मुहब्बत एक झांसा है,
कहानी भूख की सच्ची।
जो आंखें आर्द्र ना होतीं,
ज़ुबाँ ये मूक ही अच्छी।
प्रेम और भूख की मैं तो टकरार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

चलो कुछ तर्क भी कर लें,
कुछ बातें कहता हूँ।
मुहब्बत तो सही फिर भी,
भूख लिखने से डरता हूँ।
जननी है सफलता की,
जिसे हम हार कहते हैं।
सफल हो कर किया तुमने,
उसे ही प्यार कहते हैं।
जरा तुम हार कर देखो,
मज़ा फिर जीत का कितना।
जीत के बाद जो हो प्रीत,
मज़ा फिर प्रीत का कितना।
होकर आज नत मैं ये तर्क-सार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मैं हार लिखता हूँ।।

तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।
मज़ा किसमे रहा कितना बारंबार लिखता हूँ।

कोई रोटी से हारा है,
कोई गोटी से हारा है।
भूखों मर रहा कोई,