हर एक का होता है अलग अलग किरदार क्यूं डालते हो उलझन, पूछ यार या प्यार यार बिन रहेगा, मेरा अधूरा प्यार प्यार को जिताने, होते हैं मेरे यार इक क़ल्ब की है राहत, दूजा है उसकी ढाल इन दोनो के बिना मैं, जाऊं परलोक सिधार सुप्रभात, 🌼🌼🌼🌼 🌼आज का हमारा विषय "यार या प्यार" बहुत ही ख़ूबसूरत तथा तुलनात्मक है, आशा है आप लोगों को पसंद आएगा। 🌼वैसे तो प्यार और दोस्ती में कभी तुलना होनी ही नहीं चाहिए, दोनों की अपनी एक जगह तथा मायने हैं। 🌼किन्तु रचनाओं में कल्पना एक अभिन्न अंग है तो यदि तुलना कभी करनी पड़ती है तो उस स्थिति का चिंतन अपने अपने तरीके से आप को करना है।