कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी! (कमाल -ए- ज़ब्त - सहनशीलता की ऊंचाई) *परवीन शाकिर* parveen shakir ki shyri