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कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी मैं अपने हाथ

कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी 
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी!

(कमाल -ए- ज़ब्त - सहनशीलता की ऊंचाई)

*परवीन शाकिर* parveen shakir ki shyri
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी 
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी!

(कमाल -ए- ज़ब्त - सहनशीलता की ऊंचाई)

*परवीन शाकिर* parveen shakir ki shyri
harpreetsingh9475

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