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बहुत हो चुका नाच-नचनिया, अब तो सनातन की बारी है। ध

बहुत हो चुका नाच-नचनिया,
अब तो सनातन की बारी है।
धर्म का कर दिया,बहुत परिहास,
पर अब तो सनातन भारी है॥
बज चुकी है रणभेरी अब,
कायर भाग जाएंगे सब।
हर तरफ से ही होना है,
भांडो का पूरा बहिष्कार॥
महाकाल के काल से बचा,
जग में ऐसा कोई नाम नहीं
खुल गया है नेत्र, त्रिनेत्र का,
जिसका किया तूने उपहास॥
देश के जवानों का भी,
तूने किया अपमान।
देश नहीं सहेगा अब, 
इस माटी का अपमान॥
~कवि विनोद~

©VINOD VANDEMATRAM
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