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हैरत होती है कि कैसे उम्दा हूँ मैं, तुझसे दूर होक

हैरत होती है कि कैसे उम्दा हूँ मैं, 
तुझसे दूर होकर कैसे ज़िंदा हूँ मैं, 
यादों में तुझसे रूबरू होके जाना, 
मुझमें तू है बसी तभी परिंदा हूँ मैं। 

बेज़ार बस्तियों में लोग नहीं मिलते,
तन्हा आलम में  अपने नहीं दिखते,
जाने कैसे ये ज़ख़्म होश नहीं खोते,
हैरत होती कैसे इसकी बाशिन्दा हूँ मैं,
तुझसे दूर होकर कैसे ज़िंदा हूँ मैं! 

यादों को धुन-धुन, निखार लिया है, 
लम्हों को  बुन-बुन, सँवार लिया है,
बातों को चुन-चुन, पखार लिया है, 
हैरत होती है फिर कैसे शर्मिंदा हूँ मैं, 
तुझसे दूर होकर कैसे ज़िंदा हूँ मैं! 

हैरत होती है कि कैसे उम्दा हूँ मैं, 
तुझसे दूर होकर कैसे ज़िंदा हूँ...! रमज़ान 29वाँ दिन
#रमज़ान_कोराकाग़ज़
हैरत होती है कि कैसे उम्दा हूँ मैं, 
तुझसे दूर होकर कैसे ज़िंदा हूँ मैं, 
यादों में तुझसे रूबरू होके जाना, 
मुझमें तू है बसी तभी परिंदा हूँ मैं। 

बेज़ार बस्तियों में लोग नहीं मिलते,
तन्हा आलम में  अपने नहीं दिखते,
जाने कैसे ये ज़ख़्म होश नहीं खोते,
हैरत होती कैसे इसकी बाशिन्दा हूँ मैं,
तुझसे दूर होकर कैसे ज़िंदा हूँ मैं! 

यादों को धुन-धुन, निखार लिया है, 
लम्हों को  बुन-बुन, सँवार लिया है,
बातों को चुन-चुन, पखार लिया है, 
हैरत होती है फिर कैसे शर्मिंदा हूँ मैं, 
तुझसे दूर होकर कैसे ज़िंदा हूँ मैं! 

हैरत होती है कि कैसे उम्दा हूँ मैं, 
तुझसे दूर होकर कैसे ज़िंदा हूँ...! रमज़ान 29वाँ दिन
#रमज़ान_कोराकाग़ज़