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happy new year☝ यह 31 दिसम्बर 2017 साल का आखिरी दि

happy new year☝ यह 31 दिसम्बर 2017 साल का आखिरी दिन है। सुबह के 11 बजकर 50 मिनट हो चुके है और मैं अभी तक सो रहा हूँ। जब थोड़ी देर बाद नींद से जागता हूँ तो खुद को थका हुआ महसूस करता हूँ।
बिस्तर से निकलने का मन नहीं करता है और सोचता हूँ कि कुछ देर और सो जाऊँ। बहुत देर तक लेटे रहने के बावजूद नींद नहीं आती है तब मैं अपना फ़ोन उठा लेता हूँ और देखता हूँ कि बीस के करीब नोटिफिकेशन, सत्रह हैप्पी न्यू ईयर के मैसेजेस और तीन मिस्ड कॉल है। मै सभी नोटिफिकेशन चैक करता हूँ, मेसेजेस के रिप्लाई करता हूँ और मिस्ड कॉल्स को नजरअंदाज कर देता हूँ। थोड़ी देर बाद मै खुद को इंटरनेट पर कोट्स सर्च करते हुए पाता हूँ। प्यार के बारे में, इंसानी स्वभाव के बारे में, जिंदगी के बारे में, संघर्ष के बारे में,जीत के बारे में अलग अलग विचारकों को पढ़ने के बाद मैं इन सबसे ऊब जाता हूँ और मोटिवेशनल वीडियोज़ देखने लगता हूँ। कुछ देर बाद सोचने लगता हूँ कि साल का आखिरी दिन है और मैं आज भी देर तक सोया रहा हूँ। पिछले कुछ दिनों से ऐसा ही चल रहा है। रोज देर से जाग रहा हूँ,खुद को नींद के बाद भी थका हुआ पाता हूँ। पूरे दिन कुछ नहीं करना, देर रात तक फोन में डूबे रहना और फिर सो जाना। अगले दिन भी इसी की पुनरावर्ती होती है। यही सब सोचते-सोचते मैं फिर से नींद में चला जाता हूँ।
अब दोपहर के 2 बज चुके है। प्यास लग रही है। मैं पानी पीने के लिए उठता हूँ। पानी पीकर बॉलकनी में रखी कुर्सी पर आकर बैठ जाता हूँ। बॉलकनी में धूप दोपहर बाद ही आती है। मैं कुछ देर वहीं बैठा रहता हूँ और धीरे-धीरे अतीत में खोने लगता हूँ। मैं सोच रहा हूँ कि जिंदगी को लेकर जो उत्साह कभी मुझमें था वो अब शायद नहीं रहा हैं। जब मैं 8 साल का हुआ करता था तब जिंदगी एक मौज थी। मैं सपने देखा करता था। दौड़-दौड़कर गलियों में टूटकर गिरने वाली पतंगे जमा करता था। दुनिया को अचरज भरी निगाहों से देखता था। हर नई चीज को सीखने को कोशिश में घंटो लगा रहता था। खेलते वक़्त अक्सर चोटें लग जाती थी लेकिन मेरा खेलना नहीं रुकता था। मुझे पढ़ने का इतना शौक था कि मैं कॉमिक्स पढ़ने के लिए अपने उस दोस्त के घर पैदल चला जाता था जो मेरे घर से 4 किलोमीटर दूर रहता था। मैं उस जादुई पेंसिल को पाने के ख्वाब देखा करता था जिससे जो भी चित्र बनाओ तो वो सच में सामने आ जाता है। 
एक दिन मैंने अपने भाई से कहा,"कितना अच्छा होता अगर मेरे पास जादुई पेंसिल होती।" मेरे भाई मुझसे बड़े थे। उन्होंने मुझसे पूछा,"क्या करोगे अगर वो पेंसिल मिल गयी तो?" मैंने उन्हें जवाब दिया कि अगर मुझे वो जादुई पेंसिल मिल गयी तो जो भी मुझे चाहिए मुझे तुरंत मिल जाएगा। सबसे पहले एक चमचमाती साईकिल बनाऊंगा। खाने के लिए नई-नई चीजें बनाऊंगा। मिठाइयाँ,कपड़े, नया घर और भी बहुत कुछ। बचपन की ज्यादातर बातें मैं भूल चुका हूँ लेकिन बचपन की वो बात अब भी याद है जो भाई ने मुझसे कहीं थी। भाई ने एक कलम मेरे हाथ में देते हुए कहा कि "तुम्हारे हाथ में यह जो कलम है ठीक वैसी तो नही है जैसी तुम सोचते हो लेकिन इसमें भी वो जादू है जो तुम्हे हर चीज दिला सकती है। बशर्ते तुम इसका सही इस्तेमाल करना सीख जाओ।" भाई की बात का तात्पर्य शायद पढ़ने-लिखने से था।
वक़्त के साथ सब बदल गया। मैं बड़ा हुआ और मेरे सपने बदल गए। मैं जादुई पेंसिल की बातों को अब बचकानी समझने लगा था। अब मेरा नया सपना ऐथलीट बनने का था। क्योंकि मैंने बोल्ट को टी.वी. में देखा था ओलिंपिक में दौड़ते हुए। उसकी फुर्ती देखकर में रोमांचित महसूस करता था। मैं उसके जैसी सफलता, नाम-शोहरत पाने के ख्वाब में रोजाना घंटो दौड़ने का अभ्यास करता था। गाँव के सबसे ऊँचे पहाड़ पर एक ही बार में चढ़ जाता था और वहाँ ऊंचाई से चिल्लता था "मैं बोल्ट हूँ.....मैं उसैन बोल्ट हूँ।" यही आवाज लौटकर जब मेरे कानों से टकराती तो मैं भी उतना ही खुश होता था जितना कि बोल्ट ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीतने पर होता होगा। 
उस वक़्त की याद करने के बाद मेरे चेहरे पर मुस्कान सी आ जाती है और मैं वर्तमान में लौट आता हूँ। मुझे थोड़ी राहत महसूस होती है। जब वर्तमान में आप नाखुश हो तो अतीत को याद कर लेना सुकून पहुँचाता है। मुझे भूख लग रही है और धूप भी अब चुभने लगी है। मैं किचन में जाकर देखता हूँ तो कुछ ब्रेड के स्लाइस रखे मिलते है लेकिन जैम नही है। मै केवल ब्रेड को ही खाना शुरू कर देता हूँ। इनका स्वाद फीका है लेकिन अभी जिंदगी के सामने मुझे वो भी अच्छे लग रहे है। अब मैं थोड़ा ऊर्जावान महसूस कर रहा हूँ। कुछ देर यूँ ही बैठे रहने के बाद मैं अपनी कुछ पुरानी डायरियों को पढ़ने लग जाता हूँ।
साल 2012 में जब मैं कक्षा 10 में पढ़ता था मैने एक दिन डायरी लिखने का निश्चय किया। जिसमें मैंने उन 100 चीजों की लिस्ट बनाई जो मुझे जीवन में करनी थी। वह डायरी मेरे लिए एक विश लिस्ट की तरह थी। बाद में धीरे-धीरे वह मेरे विचारों को अभिव्यक्त करने का माध्यम बन गयी। मैं जो कुछ भी देखता था, जो कुछ भी सोचता था उसे डायरी में लिखने लगा। फिर एक दिन यह आदत भी छूट गयी।
मुझे लगता है जैसे जैसे मैं बड़ा होता जा रहा हूँ, खुद को पुराना महसूस कर रहा हूँ। अब इन आँखों ने सपने देखना जैसे बन्द कर दिए है। जीवन का उत्साह कहीं खो गया मालूम होता है। किसी नए काम को करते हुए गलतियाँ होने का डर लगने लगा है। सीखना तो जैसे बन्द ही हो चुका है।
happy new year☝ यह 31 दिसम्बर 2017 साल का आखिरी दिन है। सुबह के 11 बजकर 50 मिनट हो चुके है और मैं अभी तक सो रहा हूँ। जब थोड़ी देर बाद नींद से जागता हूँ तो खुद को थका हुआ महसूस करता हूँ।
बिस्तर से निकलने का मन नहीं करता है और सोचता हूँ कि कुछ देर और सो जाऊँ। बहुत देर तक लेटे रहने के बावजूद नींद नहीं आती है तब मैं अपना फ़ोन उठा लेता हूँ और देखता हूँ कि बीस के करीब नोटिफिकेशन, सत्रह हैप्पी न्यू ईयर के मैसेजेस और तीन मिस्ड कॉल है। मै सभी नोटिफिकेशन चैक करता हूँ, मेसेजेस के रिप्लाई करता हूँ और मिस्ड कॉल्स को नजरअंदाज कर देता हूँ। थोड़ी देर बाद मै खुद को इंटरनेट पर कोट्स सर्च करते हुए पाता हूँ। प्यार के बारे में, इंसानी स्वभाव के बारे में, जिंदगी के बारे में, संघर्ष के बारे में,जीत के बारे में अलग अलग विचारकों को पढ़ने के बाद मैं इन सबसे ऊब जाता हूँ और मोटिवेशनल वीडियोज़ देखने लगता हूँ। कुछ देर बाद सोचने लगता हूँ कि साल का आखिरी दिन है और मैं आज भी देर तक सोया रहा हूँ। पिछले कुछ दिनों से ऐसा ही चल रहा है। रोज देर से जाग रहा हूँ,खुद को नींद के बाद भी थका हुआ पाता हूँ। पूरे दिन कुछ नहीं करना, देर रात तक फोन में डूबे रहना और फिर सो जाना। अगले दिन भी इसी की पुनरावर्ती होती है। यही सब सोचते-सोचते मैं फिर से नींद में चला जाता हूँ।
अब दोपहर के 2 बज चुके है। प्यास लग रही है। मैं पानी पीने के लिए उठता हूँ। पानी पीकर बॉलकनी में रखी कुर्सी पर आकर बैठ जाता हूँ। बॉलकनी में धूप दोपहर बाद ही आती है। मैं कुछ देर वहीं बैठा रहता हूँ और धीरे-धीरे अतीत में खोने लगता हूँ। मैं सोच रहा हूँ कि जिंदगी को लेकर जो उत्साह कभी मुझमें था वो अब शायद नहीं रहा हैं। जब मैं 8 साल का हुआ करता था तब जिंदगी एक मौज थी। मैं सपने देखा करता था। दौड़-दौड़कर गलियों में टूटकर गिरने वाली पतंगे जमा करता था। दुनिया को अचरज भरी निगाहों से देखता था। हर नई चीज को सीखने को कोशिश में घंटो लगा रहता था। खेलते वक़्त अक्सर चोटें लग जाती थी लेकिन मेरा खेलना नहीं रुकता था। मुझे पढ़ने का इतना शौक था कि मैं कॉमिक्स पढ़ने के लिए अपने उस दोस्त के घर पैदल चला जाता था जो मेरे घर से 4 किलोमीटर दूर रहता था। मैं उस जादुई पेंसिल को पाने के ख्वाब देखा करता था जिससे जो भी चित्र बनाओ तो वो सच में सामने आ जाता है। 
एक दिन मैंने अपने भाई से कहा,"कितना अच्छा होता अगर मेरे पास जादुई पेंसिल होती।" मेरे भाई मुझसे बड़े थे। उन्होंने मुझसे पूछा,"क्या करोगे अगर वो पेंसिल मिल गयी तो?" मैंने उन्हें जवाब दिया कि अगर मुझे वो जादुई पेंसिल मिल गयी तो जो भी मुझे चाहिए मुझे तुरंत मिल जाएगा। सबसे पहले एक चमचमाती साईकिल बनाऊंगा। खाने के लिए नई-नई चीजें बनाऊंगा। मिठाइयाँ,कपड़े, नया घर और भी बहुत कुछ। बचपन की ज्यादातर बातें मैं भूल चुका हूँ लेकिन बचपन की वो बात अब भी याद है जो भाई ने मुझसे कहीं थी। भाई ने एक कलम मेरे हाथ में देते हुए कहा कि "तुम्हारे हाथ में यह जो कलम है ठीक वैसी तो नही है जैसी तुम सोचते हो लेकिन इसमें भी वो जादू है जो तुम्हे हर चीज दिला सकती है। बशर्ते तुम इसका सही इस्तेमाल करना सीख जाओ।" भाई की बात का तात्पर्य शायद पढ़ने-लिखने से था।
वक़्त के साथ सब बदल गया। मैं बड़ा हुआ और मेरे सपने बदल गए। मैं जादुई पेंसिल की बातों को अब बचकानी समझने लगा था। अब मेरा नया सपना ऐथलीट बनने का था। क्योंकि मैंने बोल्ट को टी.वी. में देखा था ओलिंपिक में दौड़ते हुए। उसकी फुर्ती देखकर में रोमांचित महसूस करता था। मैं उसके जैसी सफलता, नाम-शोहरत पाने के ख्वाब में रोजाना घंटो दौड़ने का अभ्यास करता था। गाँव के सबसे ऊँचे पहाड़ पर एक ही बार में चढ़ जाता था और वहाँ ऊंचाई से चिल्लता था "मैं बोल्ट हूँ.....मैं उसैन बोल्ट हूँ।" यही आवाज लौटकर जब मेरे कानों से टकराती तो मैं भी उतना ही खुश होता था जितना कि बोल्ट ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीतने पर होता होगा। 
उस वक़्त की याद करने के बाद मेरे चेहरे पर मुस्कान सी आ जाती है और मैं वर्तमान में लौट आता हूँ। मुझे थोड़ी राहत महसूस होती है। जब वर्तमान में आप नाखुश हो तो अतीत को याद कर लेना सुकून पहुँचाता है। मुझे भूख लग रही है और धूप भी अब चुभने लगी है। मैं किचन में जाकर देखता हूँ तो कुछ ब्रेड के स्लाइस रखे मिलते है लेकिन जैम नही है। मै केवल ब्रेड को ही खाना शुरू कर देता हूँ। इनका स्वाद फीका है लेकिन अभी जिंदगी के सामने मुझे वो भी अच्छे लग रहे है। अब मैं थोड़ा ऊर्जावान महसूस कर रहा हूँ। कुछ देर यूँ ही बैठे रहने के बाद मैं अपनी कुछ पुरानी डायरियों को पढ़ने लग जाता हूँ।
साल 2012 में जब मैं कक्षा 10 में पढ़ता था मैने एक दिन डायरी लिखने का निश्चय किया। जिसमें मैंने उन 100 चीजों की लिस्ट बनाई जो मुझे जीवन में करनी थी। वह डायरी मेरे लिए एक विश लिस्ट की तरह थी। बाद में धीरे-धीरे वह मेरे विचारों को अभिव्यक्त करने का माध्यम बन गयी। मैं जो कुछ भी देखता था, जो कुछ भी सोचता था उसे डायरी में लिखने लगा। फिर एक दिन यह आदत भी छूट गयी।
मुझे लगता है जैसे जैसे मैं बड़ा होता जा रहा हूँ, खुद को पुराना महसूस कर रहा हूँ। अब इन आँखों ने सपने देखना जैसे बन्द कर दिए है। जीवन का उत्साह कहीं खो गया मालूम होता है। किसी नए काम को करते हुए गलतियाँ होने का डर लगने लगा है। सीखना तो जैसे बन्द ही हो चुका है।
vikasrawal1872

Vikas Rawal

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