#OpenPoetry ये जो दीवाने-से दो-चार नज़र आते हैं इनमें कुछ साहबे-असरार नज़र आते हैं दूर तक कोई सितारा है न कोई जुगनू मर्गे-उम्मीद के आसार नज़र आते हैं मेरे दामन में शरारों के सिवा कुछ भी नहीं आप फूलों के ख़रीदार नज़र आते हैं कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र आज वो रौनक़े-बाज़ार नज़र आते हैं हश्र में कौन गवाही मिरी देगा "साग़र" सब तुम्हारे ही तरफ़दार नज़र आते हैं बदले-बदले मेरे ग़मख़्वार नज़र आते हैं मरहले इश्क़ के दुश्वार नज़र आते हैं इंक़लाब आया जाने ये चमन में कैसा ग़ुन्चा-ओ-गुल मुझे तलवार नज़र आते हैं जिनकी आँखों से छलकता था कभी रंगे-ख़ुलूस इन दिनों माइले-तकरार नज़र आते हैं उनके आगे जो झुकी रहती हैं नज़रें अपनी इसलिए हम ही ख़तावार नज़र आते हैं हम न बदले थे न बदले हैं न बदले हैं "शकील" एक ही रंग में हर बार नज़र आते हैं रास्ते जो भी चमकदार नज़र आते हैं सब तेरी ओढ़नी के तार नज़र आते हैं कोई पागल ही मोहब्बत से नवाज़ेगा मुझे आप तो ख़ैर समझदार नज़र आते हैं मैं कहाँ जाऊं करने शिकायत उसकी हर तरफ़ उसके तरफ़दार नज़र आते हैं ज़ख़्म भरने लगे हैं पिछली मुलाक़ातों के फिर मुलाक़ात के आसार नज़र आते हैं एक ही बार नज़र पड़ती है "ताबिश" उन पर और फिर वो बार-बार नज़र आते हैं चार-सू दर्द के अंबार नज़र आते हैं बिन तेरे हम पसे-दीवार नज़र आते हैं इस तरह दर्द दिए मुझको मेरे अपनों ने सारे अपने मुझे अग़्यार नज़र आते हैं जिनका इक पल न गुज़रता था कभी मेरे बिन जाने क्यूं आज वो उस पार नज़र आते हैं कोई क्या रस्मे-मसीहाई निभाएगा यहाँ सभी उल्फ़त के जो बीमार नज़र आते हैं जिनकी क़िस्मत में लिखा हो ग़मे-उल्फ़त का अज़ाब कभी शाइर या वो मयख़्वार नज़र आते हैं गुनगुनाते हुए अश'आर नज़र आते हैं आज बदले हुए सरकार नज़र आते हैं हम हमेशा से मोहब्बत में जुनूं के क़ायल और वो माइले-बा इंकार नज़र आते हैं वो जो मसीहा-ए-हुकूमत की ख़िलअत पहने हैं फ़िक्रे-अज़हान से बीमार नज़र आते हैं ख़ुदकश हमले हैं धमाके हैं वहाँ हंगामे सुर्ख़ी-ए-ख़ून में अख़्बार नज़र आते हैं रास्ता कितना कठिन है राह से पूछो राहबर देखने में सभी हमवार नज़र आते हैं मिम्बरों पे भी गुनहगार नज़र आते हैं सब क़यामत के ही आसार नज़र आते हैं उन मसीहाओं से अल्लाह बचाए हमको शक्ल ओ सूरत से जो बीमार नज़र आते हैं जाने क्या टूट गया है कि हर इक रात मुझे ख़्वाब में गुम्बद ओ मीनार नज़र आते हैं मात देते हैं यज़ीदों को लहू से हम ही हम ही नेज़ों पर हर इक बार नज़र आते हैं आँख खोली है फ़सादात में जिन बच्चों ने उनको ख़्वाबों में भी हथियार नज़र आते हैं