वो बचपन की उन्मुक्तता वो संग तुम्हारे खेलना दिन रात का तब साथ वो हँसी ठिठोली खेल वो स्वच्छंद बचपन की नादानियों से कितने आह्लादित हुए तब सबके मन अब कनखियों से देखते हैं सब तो लगता है क्यूँ हुई ये तब्दीलियाँ ये क्या हुआ आखिर हमें यूँ हो गए क्यूँ हम बड़े ये एहसास क्यूँ पनप गए 08.01.1998 #पुरानी_डायरी #बचपन #yqbaba #yqdidi