जेहि दिन होई काल के खेलवा, मरघट पे होई रेलवा, हाथ खाली रही, लोग देखही मेलवा, काहे तू गुमान करत बाटे एह देहि के, मिलावय खातिर माटी में आइहि, तोहरई चेलवा, जाहि दिन होई काल के खेलवा, मरघट पे मची रेलवा। अबही वक्त ब समझबूझ लेई, गिरी जब दिनवा तोहर साथ न केउ देई, मछली नियन तड़प के निकली जनवा, रह जायी सब बाबू भाई के झूठ बचनिया, जेहि दिन से होई काल के खेलवा,मरघट में मची रेलवा। जाई के सबय के बा, सबके पता बा, फिर काहे भूलाके करत बानी जुलमुवा, गरीबन के पेटवा में मर रहे लतिया, छीन झपट के भर रहे अपन झोलिया, कमजोर के सतावे रहे दिन और रतिया, माटी में मिल गए बड़ बड़ सुलतनवा, रह गयी एही हिरा मोती के खजनवा, अउर न रह पाएस किला कोठरिया, काल ले लेइस सब के बदलवा,कबीर के वानी होई पानी के समनवा, जेहि दिन होई काल के खेलवा,मछली नियन तडप के निकली जनवा। ००००००प्रदीप सरगम०००००० #Nojoto #nojotobhojpuri #AwadhiBhasha #Hindi #Prayagraj #nojotonews #alonesoul 💎motivational_abdulla🇮🇳✍️ बेबाक लेखक 💌✍️ सुुमन कवयित्री