मुझे गाँधीजी के इतने सारे विचार पसंद आते हैं कि मैं उन सारी बातों को एक पोस्ट में समेट हीं नही सकता ,कृपया caption कैप्शन में देख लें कुछ झलकियां प्रस्तुत कीं हैं मैने। मोहनदास करमचंद गाँधी को महात्मा गांधी बनने में किन चीज़ों की आवश्यकता पड़ी उसी पर आज दो शब्द: .आज देश में नई पीढ़ी के इक्का दुक्का लोग हीं होंगे जो भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्मदिन आज है वो जानते हों। महात्मा,आखिर इसका मतलब क्या होता है,ऋग्वेद के अनुसार वे सभी मनुष्य जो पृथ्वी पर विचरण करते है, और महान कार्यों को करने के बाद जगत का कल्याण करने की कामना हमेशा अपने मन, कर्म और वाणी के अन्दर रखते है, महात्मा कहलाते हैं। आपको ये परिभाषा दुबारा पढ़नी चाहिए क्योंकि एक बार में तो मैं भी ठीक से नही समझ पाया था। शायद एक बार मे आपको लगे कि गाँधीजी पर ये परिभाषा बिल्कुल सटीक बैठती है तो आप ग़फ़लत में न रहें।इनकी महानता की पराकाष्ठा तब देखने को मिलती है जब अपनी गुड मैन वाली इमेज को बनाए रखने के लिए देश के विभाजन के समय ये कोलकाता में थें। इनके एक आह्वान पर लाखों लोग एक साथ हो जाते थें और जब इन्होंने ये कहा भी था कि देश का विभाजन मेरी लाश पर होगा, तब इनकी सत्य के प्रति आस्था कहाँ थी? अपने वचन से डिगने वाले सत्य के पुजारी नहीं होते सत्यप्रेमी तो राजा हरिश्चंद्र थें जिन्होंने सपने में दिए वचन को पूरा करने के लिए सब दुःख झेला। जब देश तीन टुकड़ों में बंट रहा था तब वो बिना खड्ग और बिना ढाल से आजादी दिलाने वाले तथाकथित राष्ट्रपिता अपने राष्ट्र को बचाने के लिए इस फैसले के विरोध में आंदोलन या धरना क्यों नहीं दिए।(जब उनके पास अपार जनशक्ति थी) विभाजन के बाद जब लाखों लोग मारे जा रहे थें तब इन्होंने कोलकाता में बैठ अपने संतत्व का परिचय दिया है,सरदार भगत सिंह को फांसी से न बचाते हुए इन्होंने अपनी अहिंसा की सीमा को प्रदर्शित किया है,सरदार पटेल को प्रधानमंत्री न बनने देने से इन्होंने अपनी निष्पक्षता की चरम सीमा को भी छुआ है। सन १८५७ की क्रांति का बिगुल इनके जन्म १ दशक पहले हीं फूंका जा चुका था,७०,००,००० से ज्यादा क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता की बली वेदी पर अपनी शहादत दे दी उन वीर पुरखों के बलिदान को गौण कर दिया गया, आजाद हिंद फौज की सेना से जब अंग्रेजों में खलबली मच गई तब अपनी लोकप्रियता पर आंच न आने पाए इसलिए सुभाषचंद्र बोस जी को देश से निर्वासित जीवन जीने के लिए अंग्रेजों की चाटूकारिता की सीमा पार कर दिया गया ।उन आजाद हिंद फौज के १४,००० सैनिकों का बलिदान क्या कुछ भी नही था? इनकी तथाकथित अहिंसा की नीति बस बोलने के लिए थी इसके मूल में हर जगह केवल अपनों का रक्त हीं बहा है।