ऐ ईद क्यों तुम आ जाती हो(कविता) ऐ ईद ऐ ईद क्यों तुम हर साल आ जाती हो तड़पाती हो रुलाती हो मायूस कर के जाती हो ना तन पर नया कपड़ा है बस कहने को सब अपना है मां बहलाती है फुसलाती है खुद रोती है हमें भी रुलाती है मां ने कहा था तीस रोज़े रखोगे तो नया कपड़ा खुदा से पाओगे मां कल तो चाँद रात है ना कपड़ा मिला ना अब्बू मेरे साथ हैं शहीद हो गए थे आतंकियों से लड़ते लड़ते थक गया हूँ सरकार का आश्वासन सुनते सुनते लोग बस मोमबत्तियां जलाते हैं फोटो लगाते हैं किस हालात में गुजर रही जिंदगी पूछने नहीं आते हैं इस साल ईद के मौके पर मेरे अब्बू नहीं आएंगे हर साल की तरह अम्मी के लिए साड़ी चूड़ी नहीं लाएंगे इसलिए ऐ ईद क्यों तुम हर साल आ जाती हो तड़पाती हो रुलाती हो मायूस कर जाती हो अमीर हमज़ा