निकला तो में मदीने था, पर आज रस्ते में देखा, लगा है उर्स मोहब्बत का, शामियाना भी सजा है, महफ़िल भी जवां है, तो सोचा ज़िक्र करदूँ तेरी बेवफाई का, तुझे याद आते है, मुझे तो अच्छे से याद आते है वो बीते पल सराबोर, हर दिन, हर रोज़, बस घुटता हूँ तेरी आरज़ून लिए, और पहरा ढले हर उस पल के लिए मन को, तस्सली दे दिया करता हूँ। तूने मोहब्बत नहीं दी, कोई बात नहीं, इक़रार नहीं हुआ, कोई बात नहीं, फिर भी तेरे इश्क़ में सालो से टुटा हूँ, भिकरा हूँ कभी मौका पड़े तो बस जीना सीखा दे। बचपन में अबु ने सिखाया था, पंछी सा है तुन, पर इस जीवन की बंदिशो में है, तूने बच्चपन में हाथ क्या पकड़ा, बेकाबू सा बना दिया एक पल में इस पंछी को उड़ना सीखा दिया। अब हर रात तेरे बरामदे में ही तो गुज़ारी है, इस आस में, की अभी तो खिड़की से, जन्नत के अक्स से हम भी मुखातिब होंगे, हमे भी मौका मिले, दिल में दबी ये बात बताने को, तेरे चाँद से चेहरे की रौशनी में, बस सो जाने को। पर अब ये सब बात पुरानी है, समय जा चूका है, बहुत दूर निकल आएं है हम, लौटने को ज़ी नहीं करता, पता नहीं की तू ज़िंदा है भी या नहीं, में तो बहुत पहले ही मर चूका हूँ, पर दुयाएँ ज़रूर करूँगा उस खुदा से मदीने में, की जब भी सुबह सूरज की किरने तुझपे पड़े, तो उस धुप के हर हिस्से में, मैं हूँ, तेरे ख़ुशी के हर छुपे पहलूँ में, में हूँ, और जब भी हर ख्वाब में तू मुझे याद करे, तो वो खुदा भी मुझसे बोले, बरखुरदार तुम ज़िंदा हों। Medina