आस टूटती गयी दर्द बढ़ाता रहा साथियों। अब हम चले अपने वतन साथियों।। सांस बढती गयी नब्ज जमती गयी मरते दम तक कदमों को न उठाने दिया। कट गये दिन कुछ तो कोई गम नही मगर सर मोदी को हमनें न झुकने दिया।। भूखे प्यासे भी रहकर पत्थर उठाया नही सर पर उठाया है झोला मगर हाँथो में तलवार उठाया नही है। हमने देश मे अमन और शांति की परचम लहराया है। जिंदा रहने के लिए खाना जरूरी है मगर भूखे रहना पड़ता है साथियों। नेताओं के राशन नही भाषण सुन -सुन के पेट भरना पड़ता साथियों। मरते दम तक गवाह रहेगी नेताओं की आवाज साथियों। सारे झूठे परोसे अवाज साथियों। this kavita for Pravasi Majdur aur neta ji jhuma