फटे जूते सी ज़िन्दगी सीने के लिए चमड़ा काटता है वह किसी की जेब या गला नहीं पॉलिश करने से पहले दो कीलें भी ठोकता है दो रुपयों के लिए एक रुपया टिका कर आगे बढ़ जाता है ग्राहक उसके सीने में कीलें ठोककर मजूरी पूरी न मिलने पर चीख़ता है वह जाते हुए सवर्ण पर रुआँसा-हताश हो बुदबुदाता है वह 'रे राम आज कितनी कीलें सहनी होंगी साँझ तक?' mochiram