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फटे जूते सी ज़िन्दगी सीने के लिए चमड़ा काटता है वह

फटे जूते सी
ज़िन्दगी सीने के लिए
चमड़ा काटता है वह
किसी की जेब या गला नहीं

पॉलिश करने से पहले
दो कीलें भी ठोकता है
दो रुपयों के लिए
एक रुपया टिका कर
आगे बढ़ जाता है ग्राहक
उसके सीने में कीलें ठोककर

मजूरी पूरी न मिलने पर
चीख़ता है वह
जाते हुए सवर्ण पर
रुआँसा-हताश हो
बुदबुदाता है वह
'रे राम
आज कितनी कीलें सहनी होंगी
साँझ तक?' mochiram
फटे जूते सी
ज़िन्दगी सीने के लिए
चमड़ा काटता है वह
किसी की जेब या गला नहीं

पॉलिश करने से पहले
दो कीलें भी ठोकता है
दो रुपयों के लिए
एक रुपया टिका कर
आगे बढ़ जाता है ग्राहक
उसके सीने में कीलें ठोककर

मजूरी पूरी न मिलने पर
चीख़ता है वह
जाते हुए सवर्ण पर
रुआँसा-हताश हो
बुदबुदाता है वह
'रे राम
आज कितनी कीलें सहनी होंगी
साँझ तक?' mochiram
rajteredilk8786

SANAM.Raj

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