Nojoto: Largest Storytelling Platform

एक गीत फिर मौसम बरात का आया,क्या लिख दूँ। जलबा भी

एक गीत

फिर मौसम बरात का आया,क्या लिख दूँ।
जलबा भी मधुमास का छाया,क्या लिख दूँ।।

दूल्हे बिकते तरह-तरह के,देखो तो
आते घर ज्यों रुपये बह के,देखो तो।
दूल्हों ने बाज़ार सजाया,क्या लिख दूँ।
फिर मौसम बरात का आया,क्या लिख दूँ।।

नहीं है जिनके पास नौकरी,संत बने
नौकरी वाले दरुआ भी पर,कंत बने।
बहुत बड़ी रुपयों की माया,क्या लिख दूँ।
फिर मौसम बरात का आया,क्या लिख दूँ।।

शहनाई की धुन पर नाचें सम्बन्धी
दूल्हे की तारीफ़ हैं बाचें सम्बन्धी।
दूल्हा दिखता ख़ुद बौराया,क्या लिख दूँ।
फिर मौसम बरात का आया,क्या लिख दूँ।।

बिटिया का बापू लेकर ऋण डोल रहा,
हाँ जी,हाँ जी कह समधी से बोल रहा।
भीतर उसको ग़म ने खाया,क्या लिख दूँ।
फिर मौसम बरात का आया,क्या लिख दूँ।।

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #एक_गीत