|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10
।।श्री हरिः।।
3 - मा ते संगोस्त्वकर्मणि
'जीवन का उद्देश्य क्या है?' जिज्ञासा सच्ची हो तो वह अतृप्त नहीं रहती। भगवान की सृष्टि का विधान है कि कोई भी अपने को जिसका अधिकारी बना लेता है, उसे पाने से वह वंचित नहीं रखा जाता।
'आत्मसाक्षात्कार या भगवत्प्राप्ति?' उत्तर तो एक ही है। यही उत्तर उसे भी मिलना था और मिला - 'यह तो तुम्हारे अधिकार एवं रुचिपर निर्भर करता है कि तुम किसको चुनोगे। यदि तुम मस्तिष्कप्रधान हो तो प्रथम ओर हृदयप्रधान हो तो द्वितीय।'