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अनुभूति में जैसी उतरती हैं विशुद्ध अनछुई कल्पित वै

अनुभूति में जैसी उतरती हैं
विशुद्ध अनछुई कल्पित
वैसी कहां व्यक्त  
कर पाती  हूं
निर्जन बंजर बीहड़
बियाबान से 
सूदूर रेगिस्तान तक 
उदधि तडाग झील झरने
मनोरम दृश्य से 
हृदय विदारक  घटनाओं का
 साक्षी मन
साक्ष्य नहीं रख पाता।
सहेज कर रखी हैं
स्मृतियों ने
तितलियों के चटख रंगों की 
नैसर्गिकता का सम्मोहन
महुआ  की भीनी 
मादक मिठास की खुशबू
नासिका रंध्रों से होकर 
मस्तिष्क तक व्याप्त
उद्वेलित करती तरंगें....
आम के बौर से गंधाते
हवाओं की ठिठोलियां और
अमिया की महक का मादक स्पर्श....
मेरे शब्दकोष की अक्षमता
सहज स्वीकार्य है मुझे
क्योंकि मैं नहीं उतार पाती
भावों  को यथावत.....!!

          प्रीति



 #अनकही #स्वीकारोक्ति
#yqdidi
#yqhindi
#yqhindiquotes
#wallpaper : my click
अनुभूति में जैसी उतरती हैं
विशुद्ध अनछुई कल्पित
वैसी कहां व्यक्त
अनुभूति में जैसी उतरती हैं
विशुद्ध अनछुई कल्पित
वैसी कहां व्यक्त  
कर पाती  हूं
निर्जन बंजर बीहड़
बियाबान से 
सूदूर रेगिस्तान तक 
उदधि तडाग झील झरने
मनोरम दृश्य से 
हृदय विदारक  घटनाओं का
 साक्षी मन
साक्ष्य नहीं रख पाता।
सहेज कर रखी हैं
स्मृतियों ने
तितलियों के चटख रंगों की 
नैसर्गिकता का सम्मोहन
महुआ  की भीनी 
मादक मिठास की खुशबू
नासिका रंध्रों से होकर 
मस्तिष्क तक व्याप्त
उद्वेलित करती तरंगें....
आम के बौर से गंधाते
हवाओं की ठिठोलियां और
अमिया की महक का मादक स्पर्श....
मेरे शब्दकोष की अक्षमता
सहज स्वीकार्य है मुझे
क्योंकि मैं नहीं उतार पाती
भावों  को यथावत.....!!

          प्रीति



 #अनकही #स्वीकारोक्ति
#yqdidi
#yqhindi
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#wallpaper : my click
अनुभूति में जैसी उतरती हैं
विशुद्ध अनछुई कल्पित
वैसी कहां व्यक्त
preetikarn2391

Preeti Karn

New Creator